विभिन्न देशों के विभिन्न कलैंडर

[ पिछ्ले अंको में आपने कलैंडर के विज्ञान और भारतीय पंचांगों के इतिहास के बारे में पढ़ा। आज पढ़िये विभिन्न देशों में प्रचलित विभिन्न कलैंडरों के बारे में। श्री देवेन्द्र मेवाड़ी जी नें यह आलेख खास अपना उत्तराखंड के पाठकों के लिये भेजा है।]

Chinese-Calendar हम चीनी, इस्लामी और यहूदी कलैंडरों की बात कर रहे थे। चीन में नागरिक उद्देश्य के लिए ग्रेगोरीय, लेकिन उत्सव तथा त्योहारों की तिथियों की गणना के लिए विशेष परंपरागत चीनी कलैंडर का उपयोग किया जाता है। विश्व भर में चीनी मूल के लोग इसको काम में लाते हैं। यों, चीन में कलैंडर प्राचीनकाल से प्रचलित है। कहते हैं, सम्राट हुआंग्दी ने ई.पू. 2,637 में कलैंडर का आविष्कार किया था। चीनी कलैंडर सूर्य के रेखांश और चंद्र-कलाओं के वास्तविक खगोलीय प्रेक्षणों पर आधारित है। यानी, यह वैज्ञानिक आधार पर बनाया जाता है।

चीनी कलैंडर सौर-चांद्र कलैंडर है जिसके वर्ष सायन वर्ष और माह संयुति से साम्य रखते हैं। सामान्य वर्ष में 12 और लीप वर्ष में 13 माह होते हैं। सामान्य वर्ष में 353, 354 या 355 दिन होते हैं। लीप वर्ष 383,384 या 385 दिन का होता है। नया महीना ठीक आमावस्या से शुरू होता है, उसके अगले दिन चांद देखने से नहीं। उसी दिन महीने की पहली तारीख मानी जाती है।

चीनी कलैंडर की एक विशेषता यह है कि उसमें वर्षों के विशेष नाम होते हैं। उनका चक्र 60 वर्ष में पूरा होता है और वर्षों की पुनरावृत्ति होती है। वर्ष के नाम के दो भाग होते हैं-एक दिव्य और दूसरा पार्थिव।

चीनी कलैंडर के दिव्य नाम 10 हैं जिनका क्रम इस प्रकार हैः जिया, ई, बिंग, डिंग, वू, जी, गेंग, झिन, रेन और गुई। पार्थिव नाम राशि चक्र के 12 जानवरों के नामों पर आधारित हैं, जैसे जी (चूहा), चोऊ (बैल), यिन (बाघ), माओ (खरगोश), चेन (ड्रैगन), सि (सांप), वू (घोड़ा), वीई (भेड़), शेन (बंदर), यू (मुर्गा), झू (कुत्ता) और हाइ (सुअर)। साठ वर्ष के चक्र में पहला वर्ष दिव्य तथा पार्थिव सूची के प्रथम नाम के अनुसार जिया-जी, दूसरा ई-चोऊ, तीसरा बिंग-यिन होता है। दसवां वर्ष गुई-यू होता है लेकिन उसके बाद ग्यारहवां वर्ष फिर प्रथम दिव्य नाम के साथ जिया-झू और 12 वां वर्ष ई-हाइ होता है। 13 वें वर्ष का नाम बिंग-जी होता है। इसी क्रम में 60 वां वर्ष गुई-हाइ कहलाता है। अनुमान है कि चीन में यह वर्ष-चक्र 2637 ई.पू. में इस कलैंडर के आविष्कार से ही चला आ रहा है। Hijri_Calendar_1430

हिजरी या इस्लामी कलैंडर की शुरूआत 16 जुलाई 622 ई. से मानी जाती है। यह पूरी तरह चंद्रमा पर आधारित है। इसमें भी 12 माह होते हैं। चंद्र मास 29.53 दिन का होता है। इसलिए 12 माह में कुल 354.36 दिन होते हैं। यही कारण है कि यह ग्रेगोरीय कलैंडर से लगभग 11 दिन छोटा होता है। ग्रेगोरीय कलैंडर में 16 जुलाई 622 से अब तक 1386 वर्ष बीत चुके हैं जबकि हिजरी कलैंडर में 1428 वर्ष बीत चुके हैं। मगर, अनुमान है कि ग्रेगोरीय कलैंडर की ई.सन् 20,874 के पांचवें यानी मई माह की पहली तारीख को हिजरी कलैंडर के वर्ष 20,874 के पांचवें माह की भी पहली तारीख होगी। 

सऊदी अरब तथा खाड़ी के कुछ अन्य देशों में सरकारी कलैंडर यही है कई मुस्लिम देश प्रशासनिक कार्यां के लिए तो ग्रेगोरीय कलैंडर का उपयोग करते हैं, लेकिन धार्मिक तिथियों के लिए हिजरी कलैंडर को काम में लाते हैं।

हिजरी कलैंडर का प्रत्येक माह अमावस्या के बाद आंख से बाल-चंद्र दिखाई देने पर शुरू होता है। कई बार धुंध या बादलों आदि के कारण बाल-चंद्र नहीं दिखाई देता। लेकिन, नया महीना बाल-चंद्र दिखाई देने के बाद ही शुरू होता है। इसलिए नए महीने की ठीक-ठीक तारीख बताना कठिन होता है। यही कारण है कि पहले से तय तारीखों के साथ हिजरी कलैंडर छापना मुश्किल है। फिर भी काम चलाने के लिए ये कलैंडर छापे जाते हैं।

यहूदी कलैंडर की शुरूआत लगभग ई. 359 में हुई। धार्मिक उत्सवों तथा तिथियों के लिए विश्व भर में यहूदी लोग इसका उपयोग करते हैं। इजराइल का सरकारी कलैंडर यही है। यह सूर्य और चंद्रमा दोनों ही गतियों पर आधारित है। सामान्य वर्ष में 12 माह और अधिवर्ष में 13 माह होते हैं। प्रत्येक माह औसतन अमावस्या को शुरू होता है। सामान्य वर्ष में 353, 354 या 355 दिन और लीप वर्ष में 383, 384 या 385 दिन होते हैं। बारह माह में 11 दिन कम होने के कारण लगभग हर jewosh-calender तीन वर्ष बाद एक अधिमास या लीप का महीना जोड़ दिया जाता है। इस कारण कलैंडर ऋतुओं के अनुसार ही चलता रहता है। यह करना आसान काम नहीं था। प्राचीनकाल में इजराइल में धार्मिक नेता हर साल वसंत बीत जाने पर देखते थे कि सड़कें तीर्थयात्रियों के चलने लायक सूख चुकी हैं कि नहीं। अगर नहीं तो वे एक माह का समय आगे बढ़ा देते थे! 

तो, इस तरह विश्व की विभिन्न सभ्यताओं के लोगों ने जीवन में समय की पाबंदी के लिए समय को कलैंडर में बांधा। समय के साथ-साथ वैज्ञानिक गणनाओं के आधार पर कलैंडर में सुधार होता रहा और आज विश्व के अधिकांश देशों में एक रूपता के लिए ग्रेगोरीय कलैंडर का उपयोग किया जा रहा है।

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